तमस का
आलिंगन🔥
भीगे शरीर
की एक उजाड़ सोच जब रोती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है,
काला
बिल्कुल रंग और रूप उसका,
अंधकार ना
उस-सा किसी के बस का,
समय की
पतवार सुईयां काँप रही,
रात अँधेरी
जब मेरा जीवन भांप रही,
काले दीपों
की विशाल दीपमाला जब पिरौती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है,
दिनों की
महिमा क्या है जानकारी नही,
क्योंकि
इसमें मेरी इतनी भी हिस्सेदारी नही,
एक तो कहने
को बड़ा उजाला,
परंतु मुझे
पहननी है केवल तमस-माला,
खामोशी की
बिरहा जब अकेली सोती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है,
किताब के
अक्षर बिल्कुल सफेद रहते,
नयन मेरे
जब अंधेरे में पढ़ने को कहते,
पाताल खंड
जैसा ही स्थान घेरा,
सनातन नीम
और उसके पास भूतों का डेरा,
वो तराशे
हुए काले हीरे जब खोती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है,
कब्र में
दफ़नाने का कायदा है,
अग्निकुंड
का तो काला ही परदा है,
बाकी सब
यहाँ ठीक दिख रहा,
केवल मेरा
तमस मेरी आत्मकथा लिख रहा,
बंद आँखों
मे श्वेत और चमकदार कंकड़ चुभौती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है,
हवाएँ
बिल्कुल साँय-साँय-साँय-साँय,
हलक में
आकर मेरे अटक जाय,
कल बारिश
तो हुई जरूर थी,
लेकिन वो
मेढकों की आवाज़ दूर थी,
थाली में
मेरी बस काले गेंहू के मोती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है,
जेठ की
चिलचिलाती दोपहरी भी आयी,
फिर सावन
ने अपनी मेघारानी भी बरसायी,
मौसम यहाँ
काले नज़र आते है,
काले भँवरे
जब काली कलियों को रिझाते है,
काकवर्णी
मेरे खेत मे काली फसल बोती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है,
अँधियारी
सी नदियाँ बह रही,
हवा का
चुम्बन मेरे कानों में कह रही,
नावें तो
तमस-नगर में कई बहती है,
पर अंधेरा
है तो अदृश्य रहती है,
काले रंग
की प्रियतमा एक रात साथ सोती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है,
बस दो-चार
अँधेरे के वासी,
मैं, दीवारें और मेरी
प्रियतमा-प्रवासी,
छोटा-सा ही
जहाँ समेटे हुए,
दिनों के
उजालों को जाँघों में लपेटे हुए,
जलधार तो
नहीं मगर कालीनता मुझे डुबोती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है,
झींगुर का
रात में बजता साज़,
और काले
मंदिरों की काली झाँझ,
मंदिरों की
दिशा दक्षिण दिशा में,
पूजा नही
होती किसी भी निशा में,
क्षितिज
मेरे जहाँ में भी काला एक चुनौती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है,
छत भी
बेरंग और उस पर बेरंग ही ध्वजा है,
ना ये कोई
कालेपानी की सजा है,
हाँ थोड़े
कौड़े बरस जाते,
जब मेरे ये
होंठ एक बूंद पानी तरस जाते,
कविताओं की
रानी मेरे साथ होती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है,
बस केवल
तुमसे कुछ फीकी मुलाक़ात होती है,
वो और कुछ
नही मेरे तमस की रात होती है.
Dharendra Ratandeep
B.A / Semester 5