चंदनवन के समीप
गुप-छुप ये पंछी, नदी और पानी मुझमें ही बहते रहे,
धीरे से आकर, बदरिया के जूगनू मुझसे ये कहते रहे,
संध्या की बातें ठहर के सुनो,
उसमें से एक तिनका चुनो,
टप-टप ये बूंदे, पत्ती और शाख़ें मुझको यूँ दिखते रहे,
गुप-छुप ये पंछी, नदी और पानी मुझमें ही बहते रहे,
पर्वत की निंदिया उघड़ी जरा,
फिर पनिहारी ने जल भरा,
छम-छम ये पायल, पुतली और आँखें मुझको ही तकते रहे,
गुप-छुप ये पंछी, नदी और पानी मुझमें ही बहते रहे,
सुबह की हवा तो दिखती मधुर,
पिघला के कर दे पावन अधर,
छट-पट ये बादल, चंचल पुरवईया मुझको यूँ लिखते रहे,
गुप-छुप ये पंछी, नदी और पानी मुझमें ही बहते रहे,
किवाड़ों से उसका संगीत बजा,
मेरे मन मे एक प्रेम जगा,
छन छन ये पायल, गीत और रानी मुझमे बस रहते रहे,
गुप-छुप ये पंछी, नदी और पानी मुझमें ही बहते रहे,
Dharendra Ratande
B.A./Semester 5
Sounds good bro 🥂🥂🥂🥂🥂🥂🍻♥️
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