Monday, July 29, 2019

Poem मजबूर हूँ! by Muskan Sirwam Semester -III (Arts)

मजबूर हूँ!

मजबूर हूँ ,लेकिन खुदको मंज़ूर हूँ
कम्पेरिज़न में सबसे आगे , फिर क्रेडिट में मैं क्यों दूर हूँ
कोमल कली नहीं , गुलाब का काँटा हूँ
नज़रें झुका अपनी
तेरी फितरत पर मैं चाँटा हूँ!

ज़िद्दी हूँ , निडर हूँ
रौशनी में आकर देख, मैं तुझसे भी बड़ा दर हूँ
शमशीर हुन, कटती नहीं
काटने को तैयार, मगर कभी बटती नहीं !
             

MUSKAN SIRWAN BA-SEM:3

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